खिड़की,
जहां बैठे कई वादे किए थे तुमसे।
इन आंसुओं का मूल तो नहीं चुका पाओगी, अब तुम
बहुत से दर्द आधे किए थे तुमसे।
खिड़की,
जहां बैठे कई वादे किए थे तुमसे।
कहानियों के डेरे में जो बांध लेती थी तुम
वक्त भी नसीहत दे देता था,
किरदार चाहे जैसा भी हो
दिल के सारे ज़ख्म भर देता था।
वादे तो जिंदा है अभी तक,
मै ही नहीं रहा।
कसूर तो तुम्हारा कभी था ही नहीं
शायद मैं… मैं नहीं रहा।
उन होठों पर मुस्कान की कीमत
इन आंसुओं से चुका रहा हूं
तेरे साथ बिताए हर एक पल को
इस स्याही में छिपा रहा हूं।
ढूंढ सको खुद को इसमें
तो कसूर मेरे मत गिनवाना।
कहानी मेरी है ये,
किरदार अपने खुद के मत बनाना।
खिड़की,
जहां बैठे कई वादे किए थे तुमसे।
कुछ अपने भी याद आजाएं
तो मत शर्माना।
Love this ♥️♥️😍
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Thanks Astha! I appreciate your time on my blog. Also, please do checkout more posts. 🙂💛🤘
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Definately I will 🙂🙂💛💛
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welcome to mughal creation
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Waah! Loved this! Beautifully written 🙂
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Thanks Shreya ! Means alot. 🤘
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Finally you did it👌❤️. I really enjoyed it. 😇
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