खिड़की,जहां बैठे कई वादे किए थे तुमसे। इन आंसुओं का मूल तो नहीं चुका पाओगी, अब तुमबहुत से दर्द आधे किए थे तुमसे।खिड़की,जहां बैठे कई वादे किए थे तुमसे। कहानियों के डेरे में जो बांध लेती थी तुमवक्त भी नसीहत दे देता था,किरदार चाहे जैसा भी होदिल के सारे ज़ख्म भर देता था।वादे तो जिंदा... Continue Reading →